प्रार्थी ने जो एक न्याय निर्णय माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालीय का (चन्द्र किशोर बनाम राम बाबू (2006 (3) जेसीएलआर 57 इलाहाबाद) प्रस्तुत किया है वह भी अस्थायी व्यादेश के सम्बन्ध में है न कि शाश्वत व्यादेश के सम्बन्ध में।
2.
जैसा कि उपरोक्त वाद बिन्दुओं से साबित हो चुका है कि वादी विवादित भूमि का मालिक काबिज नहीं है ऐसे में उसके पक्ष में न तो उद्घोषणा की डिक्री पारित की जा सकती है और न ही शाश्वत व्यादेश पारित किया जा सकता है।
3.
एैसे में तब जब किवादी द्धारा विर्निदिष्ट अनुतोष अधिनियम के अर्न्तगत शाश्वत व्यादेश मॉगा गया है और जिस भवन से जुडे सुखाधिकार का मॉग करती है और उस भवन पर अपना स्वत्व साबित नहीं करती है उसके पक्ष में श्वाश्वत व्यादेश निर्गत नहीं किया जा सकता है।
4.
यदि किसी व्यक्ति को न्यायालय के द्वारा स्थायी या शाश्वत व्यादेश की डिक्री प्राप्त होती है तो वह व्यक्ति उसके निष्पादन की कार्यवाही आदेश 21 नियम 32 जा0दी0 के तहत प्रस्तुत कर सकता है न कि वह आदेश 39 नियम 2-ए जा0दी0 के तहत अपने प्रार्थना पत्र को प्रस्तुत करेगा।
5.
जैसा कि उपरोक्त वाद बिन्दुओं से साबित हो चुका है कि मौके पर वादी का कोई कब्जा दखल, स्वामित्व नहीं है ऐसी दशा में वादी के पक्ष में शाश्वत व्यादेश अनुदत्त दिया नहीं जा सकता तथा प्रश्नगत मामले में वादी का कोई वैयक्तिक हित नहीं है तदनुसार यह वाद बिन्दु प्रतिवादी के पक्ष में सकारात्मक रूप से निर्णीत किया जाता है।
6.
यह बात जरूर है कि यदि वादी को पूर्व में अस्थायी व्यादेश का उपचार प्राप्त हुआ हो तो वह उसके उल्लंघन के लिये आदेश 39 नियम 2-ए के तहत अवमानना की कार्यवाही जरूर शुरू कर सकता है लेकिन वर्तमान मामलें में प्रार्थी ने एक शाश्वत व्यादेश के निर्णय को अपनी कार्यवाही का आधार बनाया है न कि किसी अस्थायी व्यादेश के निर्णय को।
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